Tuesday, February 2, 2010

बात आज की ही नहीं, कई युग पुरानी है!

ये विश्व जहाँ हम रहते हैं, इसका आधार क्या है? इंसान का जन्म क्यों हुआ? दिन रात संघर्षों और दुखों के बीच भी क्या डोर है जो जीवन से जोड़े रखती है? संतान का माँ से संबंध, गुरु का शिष्य से, मित्र का मित्र से सम्बन्ध, दूध का जल से, नदी का सागर से या पति का पत्नी से... ऐसे कई उदाहरण भी जिस शब्द को परिभाषित न कर पाएँ वो शब्द है प्रेम. इसका जन्म मनुष्य के साथ हुआ या मनुष्य का इसके कारण, ये कहना जितना जटिल है उतना ही सुगम ये कहना है कि इसके बिना जीवन निराधार है. ये वो अद्रश्य शक्ति है जो खतरनाक जंतुओं से लेकर किसी नितांत अपरिचित तक तो वश में करने में सक्षम है. युगों युगों से मानव के मध्य यही तो एक सम्बन्ध है जो उसका अस्तित्व रहने तक जीवित रहेगा. आप में से कई यदि "दैनिक जागरण" के नियमित पाठक रहे होंगे तो शायद प्रेम को परिभाषित करती ये कविता आपको भी कंठस्थ हो गई हो. "श्री राधेश्याम प्रगल जी" द्वारा रचित ये कविता जब मैंने पढ़ी तो अवस्था आठ या नौ वर्ष की रही होगी, उस समय इसका अर्थ कितना समझ सकी थी ये याद नहीं बस इसने ऐसा मन मोहा था कि पढ़ते ही कंठस्थ हो गई. आज जीवन के २८ वर्षों बाद इसका अभिप्राय इस प्रकार मस्तिष्क में घर कर गया है कि ये ब्लॉग लिखते लिखते जब प्रेम की परिभाषा करने बैठी तो इसके अतिरिक्त और कुछ सूझा ही नहीं. जिन्होंने ये नहीं पढ़ी उनके लिए लिख रहीं हूँ..

बात आज की ही नहीं, कई युग पुरानी है,
धरती और बादल के, प्यार की कहानी है.
प्यार जो अनश्वर है, प्यार जो कि ईश्वर है,
प्यार जो हृदयधन है, प्यार जो समर्पण है.
प्यार हीर-राँझा है, शीरी-फरहाद प्यार,
प्यार कृष्ण-राधा है, जलन-पीर-याद प्यार.
प्यार महकती सुगंध, प्यार सेज शूलों की
प्यार शुद्धि हस्ताक्षर, प्यार लड़ी भूलों की
प्यार दहकती ज्वाला, सरिता का पानी है,
बात आज की है नहीं, कई युग पुरानी है...

प्रेम की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति न पहले सुनी थी न आज तक दोबारा सुन पाई हूँ. शायद आप को भी ये पढ़कर आज ऐसा ही लगा हो...

स्वर्णिम "अग्नि"

3 comments:

  1. स्वर्णिमा
    प्रेमा शब्द ही एक ऐसी चीज है जिससे हर काम आसानी से कर सकते है
    मगर इस तान्तिका युग में मुझे धर हो रहा है की एक दिन प्रेम भी
    मानव मानव भीच में नहीं रहेगा
    लेखन समयोचित एवं अछा है

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद गुरु ... सही कह रहे हैं आप.

    ReplyDelete