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शब्दों से ज़्यादा ध्वनि इस मौन की है,
ये बिन कहे बोलता है,
मन पसीजता है,
जब अपना कोई बिन बोले,
मन में भाव तौलता है!!
जीवन कैसी राह है,
यहाँ शब्दों की रणभूमि है,
अब बोलो तो तलवारें,
बिन बोले ललकारें हैं!
बोल तो सब बचपन से रहे हैं,
क्या बोलना है सदियों समझ नहीं आता,
जानवर हमसे बेहतर हैं,
इंसान होके ये बोलने का गम मौत तक नहीं जाता!!
स्वर्णिमा "अग्नि"