Friday, May 14, 2010

"कुछ कर दिखाओ कि पता चले जिंदा हो, चलती फिरती लाशों से चमन भरा दिखता है!"

आज फिर एक अलसाई सुबह में ज़िन्दगी के मायने ढूँढती अपने ऑफिस में बैठी हूँ. बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं, कम समय का बहाना क्या बनाना जब कई बार स्वयं हम ही उचित समायोजन नहीं कर पाते. कितने ही दिन से बस काम करती जा रहीं हूँ, सुबह उठ कर एक निर्धारित समयसारिणी के तहत सब कुछ होता चला जाता है और शाम होने पर जब एक और दिन बीत जाता है तो भविष्य की इमारत के लिए नींव खोदने का काम एक दिन और पूरा हो जाता है. मन में उत्साह है कुछ करने का और साथ ही विश्वास भी कि ये जीवन निरर्थक तो नहीं जाएगा. इस विश्व में कितने ही लोग जन्म लेते हैं और बस रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते, अपने परिवारों का भरण पोषण करते एक दिन चुपचाप इहलीला समाप्त करते हैं. पर क्या यही जीवन का उद्देश्य है? नहीं.. कदापि नहीं! हृदय चीत्कार करता है कि सिर्फ इस धरती पर जन्म लेने, अपना परिवार बढ़ाने और उसका भरण पोषण करने में ही व्यक्ति मात्र का कर्त्तव्य निहित नहीं. सोचिये यदि ऐसा ही सब करते रहते तो हम आज भी आदिमानव बने रहते. जीवन तो कंदमूल, कच्चा या भुना मांस खाकर भी जिया जा सकता है, फिर भी हम में से ही कुछ लोग लगातार सार्थकता के साथ सोचते रहे, आविष्कार होते रहे, कुछ नियम बने और फिर टूटे जिससे मानवता लगातार विकास करती गई और आज हम यहाँ हैं! पर क्या यहाँ रुक जाना ही नियति है? क्या प्रगति करते जाना जीवन का दूसरा नाम नहीं? आज आप में से बहुत से प्रायः ऐसा ही सोचते होंगे, परन्तु ज़िम्मेदारियों से जकड़े होंगे. लेकिन याद रखिये कि इन्हीं ज़िम्मेदारियों से समय निकालकर कुछ कर गुजरने में जीवन की सच्ची सार्थकता है. कहीं ऐसा न हो कि जीवन की संध्या में आप भी ये कहते पाए जाएँ कि करना तो हम भी बहुत कुछ चाहते थे परन्तु जीवन ने मौका ही कब दिया, वास्तव में सत्य ये होगा कि स्वयं आपने ने अपने आप को मौका नहीं दिया. तो उठिए, और आज कुछ समय निकल कर एक बार फिर सोचिये कि आपके जीवन का उद्देश्य क्या है? सिर्फ इसे जिये जाना, या इसे सार्थकता के साथ जीना? ज़रा नज़र घुमा कर देखिये, बहुतों को आपकी धनात्मक ऊर्जा की आवश्यकता है, यहाँ बहुत कुछ है करने को, बस करने वाला चाहिए....
"कुछ कर दिखाओ कि पता चले ज़िंदा हो, चलती फिरती लाशों से चमन भरा दिखता है ..."

स्वर्णिमा "अग्नि"

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