Thursday, January 12, 2012

प्यारी बिटिया ओमी के लिए

अब भी याद है, जब खुद में तुम्हें महसूस किया था,
पंखुरी सी हिलती, रात दिन मैं सोचा करती
अब तुमने करवट ली होगी, या फिर अंगडाई,
यही कयास लगाते पल बने घंटे और फिर दिन!
महीनों बस जैसे तुम्हीं से दिन होते, तुम्हीं से रात
लोग सोचते पागल है, जब राह चलते तुमसे करती बात!
कोई क्या मानेगा पर तुम भी जैसे मुझको सुनतीं,
और तब जैसे सब कुछ पाकर मैं तुम में ही खोई रहती!
एक दिन फिर कष्टों से लड़ते वो पल आया,
तुम्हें किलकारियां मारते इन बांहों ने सचमुच उठाया,
उफ़! जाने क्या सम्मोहन था,
तुमने देखा मुझको, उन आँखों में मेरा विश्व समाया!
किसी कली से बढ़कर नाज़ुक, पायल सी रुनझुन आवाजें,
सुनते बीते ये सारे दिन, तुम्हें देखते सारी रातें!
अब मुस्काती हो तो जैसे मोती बिखर बिखर जाते हैं,
हम देखें बस तुम्हें एकटक, ऐसे दिन बीते जाते हैं!
बढती जैसे चंद्रकलाएँ, हर दिन नटखट हर दिन चंचल,
मेरा विश्व तुम्हीं तुम ओमी, स्वर्णिम ये पल सबसे सुन्दर!!


स्वर्णिमा "अग्नि"