Monday, August 30, 2010

कुछ ख़ास नहीं..

आज कई दिनों बाद फिर से मस्तिष्क जो सोच रहा है वो लिखने डूबते सूरज की उदासी में बैठ गईं हूँ. कुछ ख़ास नहीं, बस यूँ ही... ज़िन्दगी बीतती जा रही है/ कभी कभी देखिये वर्षों कुछ बदलता नहीं, और कभी कभी एक पल ऐसा बीतता है कि उसके बाद कुछ भी कल जैसा रहता नहीं. अजीब सी बात है ना! कल ही पिताजी से बात कर रही थी, उनका मन कुछ भारी देखा तो समझ गई कि उन्हें क्या उलझन व्यथित कर रही है. कैसा सम्बन्ध होता है माता पिता और संतान में, दोनों ही एक दूसरे को बिना कुछ कहे सुने काफी कुछ समझ लेते हैं! उन्हें समझना वैसे उतना कठिन भी नहीं था, आखिर सदा के कर्त्तव्य परायण पिता जी कल सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ये बात लोगों को सुनने में अक्सर बहुत आम लगती है कि फलां व्यक्ति रिटायर हो रहे हैं. पर कभी उस व्यक्ति से पूंछ कर देखिये कि ये शब्द सुनकर वो क्या महसूस करता है. जब तक मैं घर पर रही, हमेशा पिता जी को हर रोज़ एक नए जोश के साथ बैंक के लिए रवाना होते देखती रही. क्या मज़ाल कि जूतों में पॉलिश न हो, कपड़ों को बिना प्रेस किये पहनना तो खैर असम्भव था. सुबह माँ तब तक नहीं बैठ पातीं थीं जब तक वो बैंक के लिए रवाना हो न जाएँ/ कुल मिलाकर सुबह का समय कहाँ जाता था कभी पता ही नहीं चला. आज वही पिता जी सुबह उठकर किया क्या जाए, इस चिंता में नहीं डूबे होंगे! कैसे ये जीवन बदल जाता है, एक ही क्षण में व्यक्ति सेवानिवृत्त हो जाता है. यही नहीं, ये दुनियां भी बहुत व्यवहारिक है. इधर अधिकारी कुर्सी से हटा, उधर लोगों के व्यवहार बदल जाते हैं. एक व्यक्ति जो स्वयं जीवन के एक नए खालीपन से संघर्षरत होता है, उसे हमारा ये बुद्धिमान समाज अक्सर बहुत "आम" बात समझकर नगण्य करता रहता है/ मध्यम आयु का एक व्यक्ति जो अभी काफी ऊर्जा से भरपूर है, कल तक ऑफिस की कुर्सी पर बैठकर सम्माननीय था, आज नितांत अकेला हो गया है. वो स्वयं को क्या समयपूर्व ही वृद्ध नहीं महसूस करने लगेगा! ये कोई बेचारगी नहीं, एक वास्तविकता है. इसकी विभीषिका को हममें से बहुत से लोग अक्सर समझ नहीं पाते, हम क्यों भूल जाते हैं कि एक दिन इसी अवस्था से हम भी गुज़रेंगे, ये दिन सदैव एक जैसे नहीं रहेंगे. एक अजीब कशमकश में हूँ कि सदैव अपनी ऊर्जा श्रोत बने रहे पिता जी को कल क्या कह दूं कि कि वो कभी मन से वृद्ध न हों. उन्हें देखकर जब बहुत से स्वार्थी सहकर्मी एक औपचारिकता भरा अभिवादन करके मुंह फेर लें तो वो मुस्कुरा कर आगे बढ़ने का साहस रखें, ऐसा क्या करूँ कि वो सेवानिवृत्त होकर भी जीवन को उसी उत्साह से जीते रहें...
क्या आपने भी अपनो को यूँ ही सेवानिवृत्त होते देखा है? यदि हाँ, तो क्या किया था आपने उनके लिए?

मैं भी कुछ तो करूंगी, आखिर मेरे लिए ये बात आम नहीं... पर हाँ शायद बहुतों के लिए कुछ ख़ास भी नहीं......

स्वर्णिमा "अग्नि"